- श्री विनोद कोटियाल
उत्तरकाशी जनपद के दयारा बुग्याल में सावन खत्म होने और भाद्रपद प्रारंभ होने पर स्थानीय लोगों द्वारा बुग्यालों में मक्खन से होली खेली जाती है। बकरी पालक और मवेशियों को पालने वाले लोगों के द्वारा यहां हर वर्ष यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार संस्कृति के साथ ही संभ्रांतता को भी दर्शाता है, अक्सर सावन माह के बाद मवेशी पालक अपनी छानियों से अपने घरों की ओर आने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं। इस पर्व पर राधा और कृष्ण के किरदार में कुछ स्थानीय बालक और बालिकाओं द्वारा मनमोहक नृत्य भी किया जाता है।मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और मक्खन से होली खेली जाती है स्थानीय कलाकारों द्वारा खूब उत्साह मनाया जाता है। हालांकि इस वर्ष कोरोना के कारण जिला प्रशासन से अनुमति न मिलने के कारण यह सूक्ष्म रूप से किया गया।
यह त्यौहार पूरे उत्तराखंड में एकमात्र जनपद उत्तरकाशी के दयारा में ही मनाया जाता है भटवाड़ी से 10 किलोमीटर दूर रैथल गांव तक सड़क मार्ग से व वहां से 10 किलोमीटर चढ़ाई पर पैदल दूरी पर दयारा बुग्याल स्थित है, यहां से काफी अच्छे और सुंदर नजारे देखने को मिलते हैं माना कि प्रकृति ने पूर्ण रूप से श्रृंगार कर अपने को सजा रखा हो। इस खूबसूरत स्थान पर एक बार आने से मन इतना प्रसन्न चित्त होता है कि मानो कि यहीं आकर बस जाएं। प्रकृति की सुंदर छवि को देखते हुए अविभाजित उत्तर प्रदेश में रैथल और बार्शू नाम की 2 गांव को पर्यटन ग्राम घोषित किया जा चुका था इसका मुख्य कारण यहाँ की सुन्दरता ही है। रैथल गाँव मे एक ऐतिहासिक पाँच मंजिला मकान भी है जो आज से लगभग चार सो साल से भी अधिक समय का माना जाता है इसे स्थानीय भाषा में पंचपुरा कहते है।भाद्रपद के माह मे यहाँ काफी मेलों का आयोजन किया जाता है, इस प्रकार यह गाँव सास्कृतिक रूप से सम्पन्न है।
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