Badiyakot Bhagwati Mandir-लोगों की आस्था, विश्वास और शक्ति का प्रमुख केंद्र।

 


badiyakot new temple
हिमालयी परंपरागत शैली में बना आदिबद्री माँ नंदा भगवती का मंदिर।


Badiyakot - जनपद बागेश्वर स्थित कपकोट तहसील के हिमालयी गांव बदियाकोट में आदिबद्री भगवती माता का भव्य धाम लोगों की आस्था, विश्वास और शक्ति का प्रमुख केंद्र है। यहाँ माता भगवती का मंदिर कुमाऊं का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां मां भगवती के साथ तिब्बतियों के हूण देवता और लाटू देवता की पूजा भी होती है। 

बदियाकोट आदिबद्री भगवती मंदिर में हर आठ वर्ष के अन्तराल में आठ्यौं अर्थात् जात का आयोजन होता है। हर चार साल में घर-आठ्यौं यानी छोटी जात होती है और हर बारह वर्ष में नन्दा जात अर्थात माल जातरा होती है। इससे पूर्व दाणू देवता पट्टी में जाते हैं। चार पट्टी दानपुर के अलावा जोहार मुनस्यारी भी जाते हैं। वहां के लोगों द्वारा देवी माता को चढ़ावा दिया जाता है तथा सभी को मां की आठ्यौं में सम्मिलित होने का न्यौता दिया जाता है। आठ्यौ के समय देव-डांगर लोग तीन माह का व्रत लेते हैं फिर नंदा कुण्ड सुन्दरढूंगा जाकर पूजा अर्चना करके नन्दा अष्टमी को वापस आते हैं। यहाँ गढ़वाल से आने वाले पूजार्थियों के लिए पूजा का समय निर्धारित है। मंदिर में माँ नंदा के पूजा-अर्चना के साथ ही उनके धर्मभाई लाटू और तिब्बती हूंण देवता की पूजा भी की जाती है।

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बदियाकोट में प्रमुख द्वार से मंदिर का भीतरी दृश्य।
 

चौदह पट्टी दानपुर में प्राचीन काल से भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मां भगवती नन्दा की पूजा सर्वत्र की जाती है । मान्यता के अनुसार दानपुर क्षेत्र का सिद्धपीठ आदिबद्री मां भगवती नन्दा बदियाकोट में माना जाता । आदि काल में मां नन्दा एक मृग का वेश रखकर गढवाल के बंड नामक स्थान से आयी थी। दो पुरूष मृग का शिकार करने के लिए पीछे आये । माता ने कन्या का रूप रखकर उनको दर्शन दिये और बदियाकोट की ऊंची पहाड़ी पर रहने तथा उन दो पुरूषों से मंदिर बनाकर पूजा अर्चना करने का आशीर्वाद देकर अन्तर्धान हो गये। इसी स्थान पर सतयुग में माता ने निशम्भु दैत्य का बध किया था। उन दो पुरूषों के छः-छः पुत्र हुए। जो मां की कृपा से 'बारह बदकोटी' के नाम से प्रसिद्ध हुए। माता रानी की सेवा के कारण भगवती नन्दा ने उन्हें देव शक्ति प्रदान की तथा जहां माता जी का मंदिर हो या पूजा होगी वहां उन बारह बदकोटी दानू लोगों की पूजा होती है तभी माता रानी संतुष्ट होती है ।

 

यहाँ पढ़ें - पोथिंग स्थित आदिशक्ति माँ नंदा भगवती मंदिर के बारे में।

 

कालान्तर में ये बारह भाई अलग-अलग स्थानों मे जाकर रहने लगे। इनमें जमनी दानू, कपूर दानू, कुबाल दानू, बालचंद दानू, जयंग दानू, माल दानू, भग दानू, विरंग दानू, जीव दानू, बैनर दानू, वीर दानू, मली दानू आदि थे जिनको देव शक्ति प्राप्त हुई थी। जो बारह बदकोटी के नाम से जाने जाते हैं।

बदियाकोट में आदिबद्री माँ नंदा भगवती।

बागेश्वर के कपकोट में मां भगवती के तीन सिद्ध पीठ माने जाते है। बदियाकोट, पोथिंग तथा बैछम धार। बैछम में भुंवर तथा कटार प्रकट होने की सत्य कथा प्रचलित है। मां के आदेश के अनुसार पोथिंग, बैछम तथा बदियाकोट में एक साथ नन्दा जात या आठ्यों नहीं हो सकती है। आज भी यही परम्परा विद्यमान है ।  बदियाकोट में दानपुर के सभी गाँवों के लोगों का मां के नाम चढ़ावा निर्धारित है। बैछम तथा पोथिंग में माता के पुजारी परम्परा से दानू लोग ही होते हैं ।

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शुक्ल पक्ष की प्रथमा पडाव को मां मां के प्रसाद के लिए विधि विधान के साथ गेहूं भरा जाता है। घराट में शुद्धता से पीस कर परम्परागत स्थान में रखा जाता है । तदुपरांत सप्तमी के दिन बाजे ढोल-दमाऊ, भकौरों तथा देव डांगरों द्वारा मंदिर में आदर पूर्वक ले जाते है। रात्रि में गौरा माता के जागर लगाये जाते है जिसमें उनकी उत्पति स्वामी ईश्वर के साथ विवाह तथा दैत्यों का संहार तथा कैलाश में रहने का वर्णन किया जाता है ।।इस नन्दा अष्टमी मेले में क्षेत्र के सभी बाहर रहने वाले तथा नौकरी पेशे वाले घर आकर माता जी को शीष नवाते हैं तथा आशीर्वाद लेते है। इस प्रकार यह नन्दा अष्टमी का मेला परम्परागत संस्कृति का परिचायक होने के साथ सामाजिक सद्भावना तथा अखंडता का प्रतीक है।