भलि केन जाया गौरा तू अपणा कैलाश, हेरि चेजा फेरि चेजा तु मैत कु मुल्क ... पारम्परिक लोकगीतों के संग बंड के ग्रामीण मां नंदा को कर रहे हैं विदा...

garhwal nanda devi puja



चमोली, 28 अगस्त 2022 | भलि केन जाया गौरा तू अपणा कैलाश, हेरि चैजा फेरि चैजा तु मैत कु मुल्क, जशीलि ध्याण तू जशीलि व्हे रेई, अपणा मैत्यों पर छत्र-छाया बणाई रेई..जैसे पारम्परिक लोकगीतों और जागरों के जरिए बंड पट्टी के ग्रामीणों ने आज बंड नंदा की डोली को अगले पडाव के लिए विदा किया। नंदा को विदा करते समय महिलाओं और ध्याणियों की आंखों से अवरिल अश्रुओं की धारा बहनें लगी। कई ध्याणी तो फफक कर रोने लगे। आज बंड की नंदा डोली और छंतोली नौरख गांव से रात्रि विश्राम के लिए रैतोली गांव पहुंची, जहां ग्रामीणों ने नंदा की डोली व छंतोली का भव्य स्वागत किया। आपको बताते चले कि बंड नंदा की डोली पहली बार कुरूड से प्रस्थान कर बंड पट्टी का भ्रमण करके नरेला बुग्याल जायेगी। इससे पहले कुरूड से रिंगाल की छंतोली ही लोकजात में नरेला बुग्याल जाती थी।



गौरतलब है कि चमोली के दशोली ब्लाॅक की बंड पट्टी से लेकर बागेश्वर जनपद के दानपुर/बधियाकोट की थाती मां नंदा के लोकोत्सव में डूबी हुई है। जनपद चमोली में 12 वर्ष में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा में सभी देव डोलीयां और छंतोली नंदा अष्टमी के दिन होमकुंड -शिला समुद्र में पहुंचती है और राजजात सम्पन्न होती है जबकि प्रत्येक वर्ष भादों के महीनें नंदा सप्तमी की यात्रा अर्थात नंदा की वार्षिक लोकजात आयोजित होती है। जनपद चमोली के 7 विकासखंडों के 800 से अधिक गांवों व अलकनंदा, बिरही, कल्प गंगा, नंदाकिनी, पिंडर घाटी की सीमा से लगे गांवों के लोग इस लोकोत्सव में शामिल होते हैं। नंदा की ये वार्षिक लोकजात 12 वर्ष में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात से कई मायनों में बेहद बृहद और भब्य होती है। वार्षिक लोकजात यात्रा के दौरान गांवो से लेकर डांडी-कांठी माँ नंदा के जागरों से गुंजयमान हो जाती है। मां नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा नंदा के सिद्धपीठ कुरुड मंदिर से शुरू होती है। यहाँ से प्रस्थान कर राजराजेश्वरी बधाण की नंदा डोली बेदनी बुग्याल में, कुरुड दशोली की नंदा डोली बालपाटा बुग्याल और कुरुड बंड की नंदा की छ्न्तोली नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन पूजा अर्चना कर, नंदा को समौण भेंट कर लोकजात संपन्न होती है।

लोक में विख्यात है बंड की नंदा की नरेला बुग्याल की वार्षिक लोकजात यात्रा।
वार्षिक लोकजात में कुरूड से चली बंड- नंदा की रिंगाल की छंतोली बंड पट्टी के बिरही, कौडिया, सिरकोट, दिगोली, लुंहा, महरगांव, बाटुला, मायापुर, गडोरा, अगथल्ला, रैतोली, नौरख, पीपलकोटी, सल्ला, कम्यार होते हुये बंड भूमियाल की थाती किरूली गांव पहुंचती है। सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में नंदा के जयकारों और जागरों के साथ बंड भूमियाल का थान थिरक उठता है और चांचणी, झुमेलो की सुमधुर लहरियों से अलौकिक हो उठता है नंदा का लोक। रात भर बंड भूमियाल की थाती में लोकोत्सव का माहौल रहता है। अगले दिन बंड पट्टी के सैकड़ों ग्रामीण माँ नंदा को रोते विलखते विदा करते हैं, साथ ही मां नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी भेंट करते हैं। महिलाएँ नंदा के पौराणिक जागर गाकर नंदा को विदा करती हैं। जिसके बाद कुरूड नंदा बंड भूमियाल की छंतोली सहित अन्य छंतोली किरूली गांव के बंड भूमियाल मंदिर से पंछूला नामक स्थान पर कुणजाख देवता से आज्ञा लेकर विनाकधार, बौंधार, भनाई होते हुये अगले पड़ाव गौणा गाँव के लिए प्रस्थान करती है। गौणा गाँव से अगले दिन छंतोली तडाग ताल, गौणा डांडा, रामणी बुग्याल, चेचनिया विनायक होते हुये रात्रि विश्राम को पंचगंगा पहुंचती है। जिसके बाद अगले दिन छंतोली पंचगंगा से नरेला बुग्याल पहुंचती है। नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी के दिन छंतोली की पूजा अर्चना कर, श्रद्धालु अपने साथ लाये नंदा को समौण के रूप में खाजा, चूडा, बिंदी, चूडी, सहित ककड़ी, मुंगरी अर्पित करते हैं। इस दौरान सामने दिखाई दे रहे त्रिशुली और नंदा घुंघुटी पर्वत की पूजा भी करते हैं। और नंदा को कैलाश की ओर विदा कर लोकजात वापसी का रास्ता पकडती है।