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अब हरेला अवकाश 17 जुलाई को, सरकार ने जारी की विज्ञप्ति।

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उत्तराखंड सरकार ने हरेला त्यौहार पर घोषित अवकाश 16 जुलाई 2023 को संशोधित कर 17 जुलाई 2023 करने की विज्ञप्ति जारी कर दी है। यानि अब हरेला त्यौहार पर सार्वजानिक अवकाश 17 जुलाई को होगा। इस वर्ष ज्योतिषीय गणना के अनुसार श्रावण संक्रांति (कर्क संक्रांति) 17 जुलाई 2023 को है और इसी संक्रांति के दिन यहाँ हरेला त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन सरकार द्वारा दिसंबर में जारी राजपत्रित अवकाशों की सूची में हरेला पर्व का अवकाश 16 जुलाई को घोषित किया किया था। जन भावनाओं का सम्मान करते हुए सरकार ने हरेला त्यौहार पर सार्वजनिक अवकाश को संशोधित कर 17 जुलाई 2023 को करने का आदेश जारी कर दिया है। 


उत्तराखंड सचिव विनोद कुमार सुमन द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है विज्ञप्ति संख्या 1401/xxxi (15)G/2022 -74  (सा०) /2016 , दिनांक 26  दिसंबर 2022 के अनुलग्नक-1 एवं 4 के क्रमांक 12 पर हरेला त्यौहर हेतु दिनांक १६ जुलाई 2023 (रविवार) को अवकाश घोषित किया गया था। विभिन्न माध्यमों के यह ज्ञात हुआ है कि हरेला पर्व दिनांक 16 जुलाई 2023 के स्थान पर दिनांक 17 जुलाई को मनाया जा रहा है। इस सम्बन्ध में सम्यक विचारोपरांत उक्त विज्ञप्ति में आंशिक संशोधन करते हुए हरेला पर्व हेतु दिनांक 16 जुलाई 2023 के स्थान पर दिनांक 17 जुलाई 2023 को सार्वजानिक अवकाश घोषित किये जाने की श्री राज्यपाल महोदय सहर्ष स्वीकृति प्रदान करते हैं। 


हरेला पर सरकारी अवकाश 17 जुलाई को - 

हरेला पर्व पर सार्वजानिक अवकाश 17 जुलाई 2023 को होगा। इसी दिन प्रदेश में हरेला का त्यौहार मनाया जा रहा है। सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय पर लोगों ने ख़ुशी व्यक्त की है। सरकार ने अपनी इस विज्ञप्ति में कहा है इस दिन समस्त प्रदेश में हरेला का सार्वजानिक अवकाश रहेगा। इस तिथि को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के अंतर्गत बैंक, कोषागार और उपकोषागार भी हरेला पर्व के मौके पर बंद रहेंगे। 

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उत्तराखंड सचिव द्वारा जारी विज्ञप्ति। 


हरेला क्या है ?

हरेला का शाब्दिक अर्थ हरियाली से है यानि हरेला हरियाली, सुख -शांति और समृद्धि का प्रतीक पर्व है। जिसके मनाने के बाद पूरे क्षेत्र में हरियाली छाने लगती है। यह पर्व ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु के आगमन पर स्वागत पर्व है। इस पर्व के मनाने से नौ दिन पूर्व उत्तराखंड में लोग पूरे रीति-रिवाजों के साथ सात प्रकार के अनाज अपने घर में एक छोटी सी टोकरी में बोते हैं। 10 वें दिन इस टोकरी से बीज अंकुरित होकर हरे-पीले रंग के पौधे हो जाते हैं इसी को स्थानीय लोग 'हरेला ' कहते हैं। 


हरेला पर वृक्षारोपण की पुरानी परम्परा -

उत्तराखंड का हरेला पूरे देश -प्रदेश में एकलौता ऐसा त्यौहार है , जिसके आयोजन पर वृक्षारोपण की परम्परा अनिवार्य है। पहाड़ वासी इस त्यौहार पर अपने आसपास दर्जनों के हिसाब से पेड़ों को लगाते हैं। वृक्षारोपण की यह परम्परा सदियों पूर्व से चली आ रही है। “हरेला” लोकपर्व इस बात का परिचायक है कि हमारे पूर्वज वन संरक्षण और पर्यावरण को अत्यधिक महत्व देते थे।  बरसात के इस मौसम में धरती की नमी नये वृक्षों के उगने के लिये उपयुक्त होती है। मान्यता है किसी पेड़ की शाखा को तोड़कर हरेले के दिन रोपा जाए तो उस शाखा से नये पेड़ का जन्म हो जाता है। होता भी ऐसा ही है। जिस पेड़ की पौध तैयार करना मुश्किल होता है, लोग उस पेड़ की शाखाएं तोड़कर हरेले के दिन गीली मिट्टी या नमी वाले स्थानों में रोप देते हैं। जिनसे नए कोपलें निकल आती हैं। जो बाद में एक वृक्ष का रूप लेता है। 


हरेला पर के बारे में कुछ ख़ास बातें पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ - Harela Festival हरेला और हमारी परम्परायें। 


हरेला पर्व के बधाई सन्देश फ्री में डाउनलोड यहाँ से करें - Harela Wishes in Kumaoni-हरेला की शुभकामनायें। 

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