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गड़िया बग्वाल - अपनी वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत।

gariya bagwal


उत्तराखण्ड के लोगों ने अपनी वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को आज भी सजों कर रखा हुआ है। अपनी संस्कृति और परम्पराओं को अक्षुण बनाये रखने के लिए यहाँ के लोग समर्पित भाव के कार्य कर रहे हैं। इसी कड़ी में आगामी मार्गशीष की अमावस्या को बागेश्वर जिले के पोथिंग समेत यहाँ से दर्जनभर गांवों में 'गड़िया बग्वाल' त्यौहार मनाया जाएगा।जिसे गड़िया परिवार के लोग सदियों से हर वर्ष मार्गशीर्ष अमावश्या को मनाते चले आ रहे हैं। 


गौरतलब है बागेश्वर के कपकोट विधानसभा स्थित विभिन्न गांवों में दीपावली के ठीक एक माह बाद गड़िया बग्वाल का आयोजन होता है। जिसे गड़िया परिवार के लोगों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बुजुर्ग लोग कहते हैं गड़िया परिवार के पूर्वजों द्वारा अपनी खेती-बाड़ी की व्यस्तता के कारण कुमाऊं के प्रचलित द्वितीया त्यौहार (भैया दूज) को बाद में मनाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने कृषि कार्यों को पूर्ण कर अपने अन्न को कुठार-भंडार में रखकर फुर्सत के साथ एक माह बाद त्यौहार मनाया और इस परम्परा को आगे ले जाते रहे। इस परम्परा को आज भी गड़िया परिवार के लोग कायम रखे हुए हैं और हर वर्ष मार्गशीर्ष की अमावश्या के दिन अपने इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह परम्परा गढ़वाल के गांवों में भी देखी जाती है। हर साल उत्तरकाशी जिले में भी मंगसीर बग्वाल ढोल की थापों, पारम्परिक भेलो, रांसी-तांदी लोकनृत्यों के साथ मनाया जाता है। 


अन्य पर्वों की भांति ही गड़िया बग्वाल (Gariya Bagwal) पर अनेक पकवान बनाये जाते हैं। अपने ईष्ट देवों और पितरों की पूजा कर घर-परिवार की कुशलता की कामना की जाती है। इस पर्व पर विवाहित बेटियों को अनिवार्य रूप से मायके बुलाने की परम्परा है। असौज-कार्तिक के काम-धंधे की व्यस्तता के बाद बेटियों के लिए यह आराम का पर्व भी है। क्योंकि इस पर्व के आने तक वे अपने सम्पूर्ण कार्य जैसे फसल समेटना, बुवाई करना, घास काटना इत्यादि पूर्ण कर चुकी होती हैं और वे बेफिक्र होकर मायके का आनंद ले सकती हैं।  


गड़िया बग्वाल पर्व के दिन गौ-वंश की पूजा करने की परम्परा है। सभी अपने मवेशियों को जौ के लड्डू, हरी घास इत्यादि खिलाते हैं। सबसे पहले मवेशियों के पाँव धोये जाते हैं। सींग और माथे पर तेल लगाकर अपने घर-भंडार को भरने में उनके सहयोग के लिए आभार प्रकट किया जाता हैं। 



  • इन गांवों में मनाया जाता है गड़िया बग्वाल - 

यह बग्वाल पर्व बागेश्वर जनपद स्थित कपकोट ब्लॉक क्षेत्र के पोथिंग, गड़ेरा, तोली, लीली, लखमारा, छुरिया, बीथी-पन्याती, कन्यालीकोट, कपकोट, पनौरा, फरसाली, हरसीला, सीमा, रीमा आदि गांवों में मनाया जाता है। इसके अलावा हमारे मित्र गांवों में भी इस बग्वाल को मनाया जाता है। 


  • इन परिवार के लोगों के द्वारा भी मनाया जाता है गड़िया बग्वाल -
आपसी सौहार्द और भाई-चारे की मिशाल को पेश करता यह पर्व गड़िया के मूल गांव पोथिंग में देखने को मिलता है। गांव में निवास करने वाले सभी गड़िया परिवार के अलावा दानू, कन्याल, बिष्ट, मेहता, फर्स्वाण, कुंवर परिवार भी इस पर्व को मनाकर आपसी प्रेम और एकता का उदाहरण पेश करते हैं । 


  • अब सामूहिक तौर पर भी मनाया जाने लगा है गड़िया बग्वाल -

त्यौहार मनाकर सामूहिक रूप से गांव के मध्य तिबारी में मनोरंजन हेतु चांचरी गायन की परम्परा को पुनर्जीवित करते हुए गांव के उत्साही युवाओं के समूह ने इस पर्व पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रारम्भ किया है। विभिन्न गांवों में रहने वाले गड़िया परिवार इस महोत्सव में अपनी सहभागिता करते हैं। गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को ढोल नगाड़ों की थाप पर कार्यक्रम स्थल तक लाया जाता है और उनके हाथों इस कार्यक्रम की शुरुवात की जाती है। विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। अलग-अलग गांवों से आये लोगों से मिलन होता है। शाम को रंगारंग कार्यक्रमों के साथ गड़िया बग्वाल महोत्सव का समापन होता है। 

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