हरेला 16 जुलाई को, पढ़िये इस त्यौहार की खास बातें -

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उत्तराखंड में हरेला त्यौहार (Harela Festival) की तैयारियां जोरों पर हैं। प्रदेश के कुमाऊँ अंचल में लोगों ने अपने घरों में हरेले की बुवाई पारम्परिक तरीके से कर दी है। वहीं प्रदेश के सरकारी विभाग भी इस त्यौहार पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलायेंगे। इस दौरान हरेला पखवाड़ा 2024 का भी आयोजन किया जायेगा, जो 16 जुलाई से 23 जुलाई के मध्य चलेगा। 


उत्तराखंड में हरेला त्यौहार 16 जुलाई 2024 को सावन संक्रांति /कर्क संक्रांति को मनाया जाएगा। इसी दिन से उत्तराखंड में सावन महीने की शुरुवात हो जाएगी। हरेला उत्तराखण्ड की संस्कृति के खेती से लगाव को प्रदर्शित करने वाला त्यौहार है। हरेला का त्यौहार समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। इस पर्व को मुख्यतः कृषि और शिव विवाह से जोड़ा गया है। 

हरेला, हरियाली अथवा हरकाली हरियाला समानार्थी है। देश धन-धान्य से सम्पन्न हो, कृषि की पैदावार उत्तम हो, सर्वत्र सुख शान्ति की मनोकामना के साथ यह पर्व उत्सव के रुप में मनाया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि हरियाला शब्द कुमाऊँनी भाषा को मुँडरी भाषा की देन है।


हरेला त्यौहार कैसे मनाया जाता है -

यह त्यौहार सामाजिक-धार्मिक व आर्थिक सहित विविध आयामों को अपने में समेटे है। हरेला पर्व के दस दिन पूर्व पांच या सात प्रकार के गेहूं, धान, मक्का जैसे बीज मिलाकर एक छोटी टोकरी में बो दिये जाते हैं। इस पूजनीय टोकरी को घरों के पूजा स्थल पर रख दिया जाता है। इसकी प्रतिदिन जल चढ़ाकर पूजा की जाती है। इसी विधान में मिट्टी के डिकारे गौरी महेश्र्वर की प्रतिमाएं बनाकर उनका पूजन किया जाता है। इसके साथ ही आठ योनियों का भी ग्रह दशाओं के रूप में पूजन किया जाता है। 

संक्रांति के दिन हरेला या उगे हुए सात प्रकार के अनाजों की विधि विधान से पूजा की जाती है तथा 'रोग शोक निवारणार्थ प्राण रक्षक वरस्पते, इदा गच्छ नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते' मंत्रों का जाप किया जाता है। पूजन के उपरान्त हरेला को काटा जाता है तथा घर के सभी सदस्य हरेला को सिर पर रखकर एक दूसरे को 'जी रया, जागि रया यो दिन यो मास भेटने रैया' आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही स्वादिष्ट व्यजंन बनाए जाते हैं तथा प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ऋतुओं के परिवर्तन के साथ मल्हार का गहरा सामंजस्य है। 

अन्य रूप में यह पर्व वृक्षारोपण दिवस के धार्मिक प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। इस अवसर पर भी लोग नये वृक्षों एवं पौधों को लगाते हैं। वृक्षारोपण एवं पर्व मनाने का समय मौसम के साथ भी मेल खाता है। पहाड़ संस्कृति जहां वृक्ष सामाजिक, आर्थिक एवं परम्परा सभी रूपों में महत्व रखते हैं, उसे संरक्षित करने एवं बढ़ावा देने के लिए ऐसे पर्व का प्रचलन है। यह एक वैज्ञानिक सोच के माध्यम से विकसित परम्परा है। 


हरेला मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा -

हरेला त्यौहार को शिव-पार्वती के विवाह से भी जोड़ा गया है। पुराणों में कथा है कि शिव की अर्धांगिनी सती ने कृष्ण रुप से खिन्न होकर हरे अनाज वाले पौधों को अपना रुप देकर पुनः गौरा रुप में जन्म लिया। इस कारण ही सम्भवतः शिव विवाह के इस अवसर पर अन्न के हरे पौधों से शिव पार्वती का पूजन सम्पन्न किया जाता है। श्रावण माह के प्रथम दिन, वर्षा ॠतु के आगमन पर ही हरेला त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से किसानों का त्यौहार है। 


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हरेला पर्व पर वृक्षारोपण करते लोग। 


उत्तराखंड में मनाया जा रहा है-हरेला पखवाड़ा 2024 

प्रदेश में सरकारी कार्यक्रम के रूप में हरेला पखवाड़ा -2023 मनाया जाएगा, जो 16 जुलाई से 23 जुलाई तक चलेगा। यह कार्यक्रम विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों के बच्चों और शिक्षकों द्वारा चलाया जायेगा। जिसमें विभिन्न स्थानों में वृक्षारोपण के साथ-साथ निबंध, कला, पोस्टर, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएँगी।