उत्तराखंड में रोजगार का न होना पलायन का प्रमुख कारण माना जाता रहा है। रोजगार की तलाश में हर साल हजारों युवा अपने घर द्वार और खेत-खलिहान छोड़कर दस बीस हजार की नौकरी के लिए शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। वहीं गैरसैंण निवासी शैलेन्द्र रावत व उनकी पत्नी पूजा ने देहरादून में अच्छी खासी नौकरियां छोड़कर दो साल पूर्व अपने गांव गैरसैंण वापस जाकर वहीं कुछ करने का निर्णय लिया। (Success Story of Shailendra and Pooja Rawat)
- शैलेन्द्र रिलायंस माल देहरादून में मैनेजर और पूजा करती थी डिग्री कालेज में नौकरी।
शैलेन्द्र ने इस दौरान गूगल पर स्वरोजगार के कई विकल्प खंगाले। उन्हें फेब्रीकेशन से घर व कॉटेज बनाने का काम उचित लगा। गैरसैंण में भी फेब्रीकेशन का काम करने वाले ज्यादातर लोग मैदानी क्षेत्रों से ही जाते थे, बस शैलेन्द्र ने इस काम को अपनाने का निर्णय लिया। देहरादून के एसी ऑफिस में काम करने की जगह लोहे की कटिंग एवं वेल्डिंग का काम बेहद कठिन होने के बावजूद इसको करने का निर्णय लिया और उसने पहला फेब्रिकेटेड कॉटेज अपने ही लिए बेहद कठिनाई से तैयार किया।
शैलेन्द्र की मेहनत रंग लाई और एक लिखे पढ़े युवक द्वारा इतना कठिन काम करते देख लोग उसके मुरीद हो गये। जिससे उसे फेब्रिकेशन का काम मिलने लगा। पूजा ने भी पहले बच्चों का ट्यूशन शुरू किया और फिर अपने ही स्कूल में पढ़ाने लगी।
- शैलेन्द्र ने गांव जाकर शुरू किया फेब्रिकेशन का काम, दो साल में ही महारत हासिल कर ली।
कई तरह के उतार-चढ़ावों के बाद शैलेन्द्र ने अपने मेहनत के बल पर मात्र दो वर्ष में ही करीब आठ लाख की मशीनें व जनरेटर के साथ एक नई कार भी खरीद ली है, जिसमें उसका फेब्रिकेशन का सामान भरा रहता है।
पूजा बताती हैं कि वे जब अपनी नौकरियां छोड़कर वापस गांव गये तो उनके पास मात्र 80-90 हजार रुपए ही थे। इसी में सब कुछ किया। कई बार लगता था कि उन्होंने गांव लौटकर कोई बड़ी गलती तो नहीं कर दी ? लेकिन फिर दोनों विचार विमर्श कर इस बात पर सहमत होते थे कि गांव के शानदार वातावरण के साथ साथ रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। क्योंकि यहां मिस्त्री व फेब्रिकेशन जैसे काम में बिजनौर व सहारनपुर से आये कारीगरों का एकाधिकार है। हम अपने मेहनत के बल पर अपनी जगह बना सकते हैं। बस, यही सोचकर उनका हौसला बढ़ता रहा। (Self Employment in Uttarakhand )
- और इसी दौरान अपना घर, गाड़ी और स्कूल भी कर दिया तैयार।
अब शैलेन्द्र फैब्रिकेशन के साथ लकड़ी पर परम्परागत स्थानीय नक्काशी के लिए हाईटेक मशीनें खरीदने की योजना बना रहे हैं। साथ ही बा गवानी, पोलीहाउस लगाकर गैर मौसमी सब्जियां पैदा करने का वे रोड मैप तैयार करने में जुट गये हैं।
युवा दम्पति का कहना है, गांव में बसना बहुत कठिन है पर यदि आप में हौसला और मेहनत का जज्बा पक्का है, तो दूर से बेहद कठोर लगने वाले ये पहाड़ आपके लिए स्व-रोजगार के नये व शानदार द्वार भी खोलने में कंजूसी नहीं करते।
साभार- श्री विजेन्द्र रावत, गैरसैंण।
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