परंपरागत जलस्रोत धारों की पूजा से जलस्रोतों के संरक्षण का सन्देश देंगे इस गांव के लोग -

परंपरागत जलस्रोत धारों की पूजा से जलस्रोतों के संरक्षण का सन्देश। 


उत्तराखंड में सूखते जा रहे हमारे परंपरागत जलस्रोत नौले, धारे यहाँ के पर्वतीय इलाकों में भीषण जल संकट पैदा होने के साफ संकेत देने लगे हैं। जिस गति से हर वर्ष हमारे परंपरागत जलस्रोत सूखते जा रहे हैं उससे लगता है शीघ्र ही ये अपना अस्तित्व ही खो देंगे। हमारे पास अभी भी समय है हम अपने इन परंपरागत जलस्रोतों को रिचार्ज करने के लिए एकजुट होकर निरंतर काम करें। 


बागेश्वर जिले के चौगांवछीना के ग्रामीण अपने परंपरागत जलस्रोतों के संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आये हैं। धारों की पूजा, पर्यावरण एवं जल संरक्षण कार्यक्रम के तहत वे अपने क्षेत्र के परंपरागत जलस्रोतों को जीवित रखने के लिए काम करेंगे। इसकी शुरुवात वे नौपोलिया धारा, पार धारा, गैर धारा, भूमज्यू धारा की पूजा से करेंगे। जिसकी शुरुवात शनिवार, 11 फरवरी से हो रही है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाज कल्याण एवं परिवहन मंत्री चन्दन राम दास, विशिष्ट अतिथि जिलापंचायत अध्यक्ष बसंती देव और कपकोट के विधायक सुरेश गढ़िया होंगे। 

इन धारों की पूजा के साथ होंगे कार्यक्रम -

देवलधार एकता सांस्कृतिक मंच के पदाधिकारी विजय रावत ने बताया 'जीवन के स्रोत हमारे धारे हमारे संस्कृति' के अंतर्गत सर्वप्रथम वे धारों की पूजा से शुरुवात करेंगे। जो 11 फरवरी को आयोजित होगा। प्रातः 7 बजे पार धारा की पूजा, 8 बजे नौपोलिया धारा, 9 बजे गैरधारा, 10:30 बजे भूमज्यू धारे की पूजा की जाएगी। 1 बजे भूमिया मंदिर में माघ खिचड़ी भोग का आयोजन होगा और अपराह्न 2 बजे से 5 बजे तक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। 


जल संकट से बचना है तो-

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों को जल संकट से बचाने के लिए परंपरागत जलस्रोतों नौलों और धारों को बचाने के लिए हम सभी को जाग्रत होने की आवश्कयता है। वनों को बचाना होगा। हर वर्ष वृक्षारोपण कर लगाए गए वृक्षों की रक्षा करनी होगी। अपने परंपरागत स्रोतों की साफ़-सफाई का विशेष ध्यान देना होगा। वनों में लगाने वाली आग निरंतर हमारे जलस्रोतों को निगलती जा रही है। वनों में कतई भी आज न लगे यह हम सभी को सुनिश्चित करना होगा। 


उत्तराखंड में धारे पूजन की परम्परा-

उत्तराखंड में धारे, नौलों की पूजा सैकड़ों वर्षों से होती चली आ रही है। कुछ वर्षों पहले तक समय-समय पर जल स्रोतों की पूजा होती थी। विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के शुरू होने से पहले एक दिया जलाकर नजदीकी जलस्रोत से पानी को अविरल बहते रहने की कामना की जाती थी और इस कार्यक्रम के लिए अधिक मात्रा में जल देने के लिए याचना की जाती थी। यहाँ धारे के आसपास रहने वाले नागों की पूजा की परम्परा थी। हमने अनुभव किया है धारे के आसपास रहने वाले नागों ने कभी भी किसी व्यक्ति या पशु-पक्षी को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाया है। उत्तराखंड में धारों और नौलों की  धार्मिक महत्ता को देखते हुए मासिक धर्म से गुजर रही कोई भी महिला यहाँ से स्नान नहीं करती थी। 

विवाह के बाद घर में आई नयी दुल्हन द्वारा धारे की पूजा कर ताम्बे के गागर में घर पर पानी लाने की परम्परा ये दिखाती है हमारी संस्कृति और हमारे समाज ने जीवनदायिनी नौलों और धारों को पूजनीय बनाया है, लेकिन आज हम इस परम्परा को भूल से गए हैं। यदि हमें अपने अस्तित्व को बनाये रखना है तो जीवन के इन स्रोतों को जीवित रखने के लिए आगे आना होगा। 


जल संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है देश - 

वर्ष 2018 में भारत सरकार द्वारा जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश इस समय इतिहास में जल संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 करोड़ लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं,जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में 70 प्रतिशत पानी दूषित है और पेयजल स्वच्छता गुणांक की 122 देशों की सूची में भारत का स्थान 120 वां है। रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दर से दोगुनी हो जाएगी, जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी आ जाएगी।


सूखे के चेपट में भारत के कई प्रदेश -

पिछले वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सूखे के कारण 10 राज्यों के 254 जिलों में करीब 33 करोड़ से भी ज्यादा लोग सूखे की चपेट में हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में 10 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। यूपी के अलावा उत्तराखंड, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, ओडिशा और कर्नाटक सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं,चिंता की बात है कि आज भारत में जल‚ जंगल और जमीन जैसे मूलभूत प्राकृतिक संसाधनों का विकास के नाम पर इतनी निर्ममता से संदोहन किया जा रहा है, जिसके कारण प्राकृतिक जलचक्र गड़बड़ा गया है। भूमिगत जल का स्तर नीचे गिरता जा रहा है। वनों और वृक्षों के कटान से कहीं बाढ़ की स्थिति आ रही है तो कहीं सूखे का प्रकोप छाया हुआ है। यह भी चिन्ता का विषय है कि भारत जैसे देश में जहां वृक्षों की धार्मिक दृष्टि से पूजा होती है वहां आज केवल ग्यारह प्रतिशत वन क्षेत्र ही सुरक्षित रह गए हैं। जबकि यूरोप, अमरीका आदि विकसित देशों में आज भी तीन गुना और चार गुना ज्यादा वन क्षेत्र सुरक्षित हैं। 

जल सुरक्षा के प्रति जागरूक किया जाये- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 

जनवरी माह में भोपाल में आयोजित विभिन्न राज्यों के जल मंत्रियों के पहले राष्ट्रीय सम्मलेन को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा लोगों के बीच विशेष अभियान चलाकर जल सुरक्षा के प्रति उन्हें जागरूक करना चाहिए।  सरकार के अकेले के प्रयास से ही सफलता नहीं आती। जो सरकार में हैं, उन्हें इस सोच से बाहर निकलना होगा कि उनके अकेले के प्रयास से अपेक्षित परिणाम मिल जायेंगे। इसलिए जल संरक्षण से जुड़े अभियानों से जनता, सामाजिक संगठनों , सिविल सोसाइटी को भी ज्यादा से ज्यादा जोड़ना होगा। 


बागेश्वर के चौगांवछीना के ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा यह प्रयास सराहनीय है। इस पहल से लोगों में धारे, नौलों को संरक्षित और संवर्धित करने की प्रेरणा जाग्रत होगी।