उत्तरौड़ा गांव से कदली वृक्ष लेने जाते भगवती मंदिर पोथिंग के देव डांगर एवं श्रद्धालुगण। |
कपकोट | पोथिंग गांव में हर साल भादो महीने में होने वाली भगवती माता की पूजा की तैयारी शुरू हो गई है। शुक्रवार को श्रद्धालुजन देव डंगरियों के साथ माता के जयकारा करते हुए कपकोट बाजार होते हुए कदली वृक्ष लेने उत्तरौड़ा गांव गए।
बागेश्वर के पोथिंग गांव स्थित माँ भगवती का भव्य मंदिर है। जहां हर वर्ष भाद्रपद की नवरात्रों में माँ की विशेष पूजा की जाती है। पूजा में माँ भगवती की मूर्ति का निर्माण कदली वृक्ष के तनों से किया जाता है। जिसे कपकोट के उत्तरौड़ा गांव से पूरे विधि-विधान के साथ लाया जाता है। हरेला की पूर्व संध्या पर पोथिंग गांव से चयनित लोग देवी भगवती, लाटू, गोलू, बाण, छुर्मल आदि देव डांगरों के साथ पैदल कनयूटी, पुल बाजार, कपकोट, पनौरा होते हुए उत्तरौड़ा गांव पहुंचते हैं। जगह-जगह पूरे दल का भव्य स्वागत किया जाता है। रात्रि विश्राम उत्तरौड़ा में होता है। हरेला पर्व की भोर में देव डांगर और दल के सदस्य सरयू में स्नान कर मंदिर में पहुंचेंगे। देवी भगवती अपने डांगर में अवतरित होकर कदली वृक्षों को पोथिंग धाम को ले जाने के लिए चुनाव करेंगी। मान्यता है जिस वृक्ष को माता के द्वार जाना होता है उसमें कंपन पैदा होती है और उसी वृक्ष को पोथिंग ले जाया जाता है।
हरेला की पूर्व संध्या से ही उत्तरौड़ा गांव में खूब चहल-पहल रहती है। पोथिंग से आने वाले दल का बेसब्री से इंतजार रहता है। रात में माता के भजन गाये जाते हैं। सुबह कदली वृक्षों को विदा करते समय उत्तरौड़ा के ग्रामीणों की आंखें नम हो जाती हैं। जिस तरह एक बिटिया को लोग ससुराल को विदा करते हैं, उसी भाव से उत्तरौड़ा के लोग इन कदली वृक्षों को विदा करते हैं। वृक्षों को चुनरी, पिछौड़ा आदि वस्त्र ओढ़ाकर विदा करने की परंपरा है। विदा करने का यह दृश्य बेहद ही दर्शनीय और भावुक करने वाला होता है। दल दो कदली वृक्षों को लेकर गैनाड़ की पहाड़ी, पन्याति, बीथी होते हुए पैदल पोथिंग को रवाना होता है।
उत्तरौड़ा गांव से कदली वृक्षों को लाते भगवती मंदिर पोथिंग के श्रद्धालु। |
वहीं पोथिंग गांव में कदली वृक्षों के आने का बेसब्री से इंतजार रहता है। दास बंधु दल को लाने के लिए ढोल-दमाऊं और नागड़े के साथ बीथी टॉप तक जाते हैं। यहां से सभी भक्त दल में सम्मिलित होते जाते हैं। पोथिंग गांव के निर्धारित स्थान पर इन वृक्षों का रोपण किया जाता है। हर दिन गौ दुग्ध से वृक्षों को सींचा जाता है। भाद्रपद की सप्तमी को इन वृक्षों को मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है, जहां अष्टमी को होने वाली पूजा के लिए माँ भगवती के मूर्ति निर्माण में इनके तनों का उपयोग होता है।
रंग्याली पिछौड़ा ओढ़ाकर बेटी की तरह कुछ इस तरह विदा किये जाते हैं कदली वृक्ष।
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