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विश्व पटल पर कुमाऊंनी रंगीली पिछौड़ी को पहुँचाया मंजू टम्टा ने।


पहाड़ की जवानी पहाड़ के ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व व देश के काम आ सकती है। जी हां साथियों आज अपने किस्से के पहाड़ की इसी कड़ी में बात पहाड़ की उस महिला की जो पिछोड़ी पर शुरू किए गए अपने अनोखे स्टार्टअप के माध्यम से राज्य को विश्व स्तर पर एक अलग सांस्कृतिक पहचान दिला रही है। उत्तराखंड के कुमाऊं प्रांत से संबंध रखने वाली पिछोड़ी वूमेन मंजू टम्टा जी ने पहाड़ी कल्चर को बढ़ावा देने व पहाड़ों में खुद का रोजगार शुरू करने हेतु राज्य के नव युवाओं के लिए एक पृथक परिभाषा गढ़ी है। अपनी इस अनुपम, अभूतपूर्व पहल के माध्यम से उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से यह बयां किया है कि पहाड़ का हर एक पहाड़ी पर्वत जैसे ही कठोर  हौसलों व बुलंदियों के इरादों को लेकर जीते हैं।

मूल रूप से लोहाघाट चंपावत की रहने वाली मंजू टम्टा जी का जन्म दिल्ली में हुआ। मंजू जी का बचपन और जवानी शहरों में ही व्यतीत हुई,  किंतु वह बताती है कि दिल्ली जैसे महानगर में रहकर भी वह अपने कुमाऊनी कल्चर से इतर नहीं हुई। वह सदैव अपनी मूल जड़ों पर ही अडिग रही, वर्षभर में अक्सर वह गर्मियों आदि की छुट्टी में ही अपने परिवार के साथ गांव जा पाती थी। मंजू जी की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी इरविन स्कूल से हुई , और फिर स्नातक दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में संपन्न कर,  उन्होंने ताज ग्रुप ऑफ़ होटल्स सहित तमाम कई प्रसिद्ध संस्थानों में नौकरी भी की। मंजू जी  यह बताती है कि काफी पहले से उनके मन में यह विचार था,  कि अपने उत्तराखंड के उत्पादों पर कुछ अलग तरह से कार्य किया जाए,  विशेषकर कुमाऊं की रंगीली पिछौड़ी उन्हें काफी लुभाती थी। वह कहती है कि अपने छोटे भाई की शादी में उन्होंने पिछौड़ी पहनने का निर्णय लिया और अपनी चंपावत की  मौसी से 3 पिछोड़ी मंगवाई,  किंतु बदलते दौर के साथ-साथ मंजू जी को कहीं ना कहीं पिछोड़ी में आधुनिकता का कुछ अभाव लगा, और तभी से उनके मन में यह ख्याल आया कि, क्यों ना विभिन्न आकर्षक डिजाइनों के माध्यम से अपने कुमाऊं की रंगीली पिछौड़ी को नया रूप व आकार दिया जाए। इसके उपरांत मंजू जी ने  पिछौड़ी पर अपना गहन अध्ययन करना आरंभ कर दिया और और 2 साल तक गहन अध्ययन करने के उपरांत  अपनी दिल्ली व देहरादून में रहने वाली 5-6 साथियों के साथ इस क्षेत्र में अपने कदम पसार दिए। शुरुआत में उन्होंने मात्र 30 पिछौड़ी को ही पृथक-पृथक रूप से डिजाइन किया। 

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