मूल रूप से लोहाघाट चंपावत की रहने वाली मंजू टम्टा जी का जन्म दिल्ली में हुआ। मंजू जी का बचपन और जवानी शहरों में ही व्यतीत हुई, किंतु वह बताती है कि दिल्ली जैसे महानगर में रहकर भी वह अपने कुमाऊनी कल्चर से इतर नहीं हुई। वह सदैव अपनी मूल जड़ों पर ही अडिग रही, वर्षभर में अक्सर वह गर्मियों आदि की छुट्टी में ही अपने परिवार के साथ गांव जा पाती थी। मंजू जी की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी इरविन स्कूल से हुई , और फिर स्नातक दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में संपन्न कर, उन्होंने ताज ग्रुप ऑफ़ होटल्स सहित तमाम कई प्रसिद्ध संस्थानों में नौकरी भी की। मंजू जी यह बताती है कि काफी पहले से उनके मन में यह विचार था, कि अपने उत्तराखंड के उत्पादों पर कुछ अलग तरह से कार्य किया जाए, विशेषकर कुमाऊं की रंगीली पिछौड़ी उन्हें काफी लुभाती थी। वह कहती है कि अपने छोटे भाई की शादी में उन्होंने पिछौड़ी पहनने का निर्णय लिया और अपनी चंपावत की मौसी से 3 पिछोड़ी मंगवाई, किंतु बदलते दौर के साथ-साथ मंजू जी को कहीं ना कहीं पिछोड़ी में आधुनिकता का कुछ अभाव लगा, और तभी से उनके मन में यह ख्याल आया कि, क्यों ना विभिन्न आकर्षक डिजाइनों के माध्यम से अपने कुमाऊं की रंगीली पिछौड़ी को नया रूप व आकार दिया जाए। इसके उपरांत मंजू जी ने पिछौड़ी पर अपना गहन अध्ययन करना आरंभ कर दिया और और 2 साल तक गहन अध्ययन करने के उपरांत अपनी दिल्ली व देहरादून में रहने वाली 5-6 साथियों के साथ इस क्षेत्र में अपने कदम पसार दिए। शुरुआत में उन्होंने मात्र 30 पिछौड़ी को ही पृथक-पृथक रूप से डिजाइन किया।
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