Shradh Karma Rules श्राद्ध कर्म में इन नियमों का पालन जरूर करें।

Shradh Karma Rules

हिन्दू धर्म में श्राद्ध ' Shradh ' का विशेष महत्व है। श्राद्ध हिन्दू धर्म में किया जाने वाला एक कर्म है, जो अपने पितरों यानि दिवंगत माता-पिता, दादा-दादी आदि के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के लिए किया जाता है। 

श्राद्ध का सही अर्थ है 'श्रद्धा का अर्पण करना।' मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज पितृलोक से धरती पर आते हैं। इसलिए उनके प्रति श्रद्धा का अर्पण करना , तर्पण  करना जरुरी होता है। अपने श्रद्धा भाव के अर्पण के द्वारा ही हम अपने पितरों को खुश कर सकते हैं। भवाली के राजीव पाण्डे जी द्वारा श्राद्ध कर्ता के लिए कुछ जरुरी बातें बताई हैं , जो इस प्रकार हैं - (shradh rules in hindi)


श्राद्ध कर्ता को निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है -

1- श्राद्ध हमेशा सफेद वस्त्र धोती पहनकर करें।

2- श्राद्ध के दिन सुबह पवित्र होकर जनेऊ बदलें।

3- हबीक के दिन (श्राद्ध की पूर्व संध्या ) सूर्यास्त से पहले गौ ग्रास दें व भोजन करें। भोजन सूर्यास्त के बाद भी करने का विधान है लेकिन गौ ग्रास सूर्यास्त से पहले जरूरी है।

4-प्रत्येक श्राद्ध कर्ता जिनके पिताजी नहीं है को इन पार्वण श्राद्ध में मुंडन करने का विधान है।

4- श्राद्ध के दिन जब तक श्राद्ध कर्म ना हो तब तक गौशाला से गोबर खाद निकालकर बाहर नहीं फेंकना चाहिए, अन्दर इकट्ठा करके रख सकते हैं।

5- तर्पण से पहले नहाये के वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए।

6- जहाँ से श्राद्ध शुरू हो गया तो बीच में किसी अन्य कार्य के लिये नहीं उठना चाहिए जब तक श्राद्ध खत्म ना हो।

7- तर्पण श्राद्ध में हमेशा काले तिल का ही उपयोग करें।

8- श्राद्ध सूर्योदय से पहले नहीं करना चाहिए क्योंकि उक्त तिथि सूर्योदय से मानी जाती है, मान्यता है ऐसा करने से पितृ रुष्ट हो जाते हैं।

9- श्राद्ध के दिन खीर अवश्य बनानी चाहिए, क्योंकि खीर पितरों को प्रिय है।

10- श्राद्ध में कद्दू की सब्जी, हरी सब्जी व लहसन प्याज वर्जित है व 16 दिन तक लहसन प्याज का त्याग करना चाहिए। जब तक श्राद्ध नहीं किया हो तब तक तो अवश्य त्याग करना चाहिए। श्राद्ध में मल्का की दाल भी वर्जित है। गौ ग्रास से पहले खाने में हरा धनिया डालना भी वर्जित है।

11-श्राद्ध में हरी पत्ती (कड़वी पत्ती ) आंवले के पत्ते व सफेद फूल का ही उपयोग करना चाहिए।

12- श्राद्ध कर्ता को अपने पितरों की पसंद की सामग्री चाहे वो कुछ भी हो दान करनी चाहिए।

13- श्राद्ध में श्राद्ध कर्ता को गुस्सा करना व ज्यादा बोलना भी वर्जित है, जितना हो सके श्राद्ध का कार्य खुद करने की कोशिश करनी चाहिए।

14- गौ ग्रास व अन्य सामग्री खुद जाकर अपने हाथों से देना चाहिए।

15- श्राद्ध कर्ता को धोती के अलावा ऊपर कमीज कुर्ता इत्यादि नहीं पहननी चाहिए। कंधे में वस्त्र अंगोंछा अवश्य होना चाहिए, वो भी रंग बिरंगी ना हो।

16- श्राद्ध खत्म होने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर श्राद्धकर्ता को ब्राह्मण को अपनी सरहद तक अवश्य छोड़ना चाहिए, ब्राह्मण का झोला अपने कंधे पर रखकर घर से 10-20 कदम तक तो अवश्य ही छोड़ना चाहिए तथा फोन करके घर पहुँचे या नहीं अभी की खबर अवश्य लेनी चाहिए। 

17-ब्राह्मण से भोजन के स्वाद के बारे में न पूछें और ना ही ब्राह्मण की थाली में अपने हाथ से आचार परोसें।  अगर ब्राह्मण को अचार जरूरी है तो खुद अपने हाथों से निकाल सकता है।

18- श्राद्ध कर्ता को घर पर ब्राह्मण के पहुँचने पर उसके पैर धोकर सत्कार करना चाहिए।

19- पितरों का स्मरण करते रहना चाहिए व पूरे श्राद्ध तक उनकी बातें व उनके गुणगान करते रहने का विधान है।

20- श्राद्ध कर्ता की चुटिया खुली हो गांठ ना हो व टोपी ना हो।

21- जिनके माता पिता का स्वर्गवास इसी साल हुआ हो, अभी वार्षिक श्राद्ध नहीं हुआ है तो उनको भी इन पार्वण श्राद्ध में उनके निमित्त तर्पण अवश्य करना चाहिए तथा पातली (भोजन)अवश्य परोसना चाहिए।

इस नियमों को अपनाकर आप अपने पितरों के प्रति सच्ची श्रद्धा का अर्पण कर सकते हैं।