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और छूट गये तीज त्यौहार भी -भू-धसांव की वजह से नहीं मनाया जोशीमठ के वाशिंदों ने चुन्यां त्यौहार..


संजय चौहान। जोशीमठ आपदा से न केवल मानव प्रभावित हुआ है अपितु बेजुबान जानवर भी। इतिहास गवाह है कि आपदाओं की त्रासदी से लोक और लोक के तीज त्यौहार पर भी संकट मंडराता है। ऐसा ही कुछ इस साल मकर संक्राति को जोशीमठ में भी देखना को मिला। जोशीमठ में हो रहे भू-धसांव की वजह से इस साल लोगों के घरों में चुन्या त्यौहार नहीं मना। हर साल बड़े व्यापक रूप में जोशीमठ और पूरे पैनखंडा में मनाया जाता था मकर संक्राति के अवसर पर चुन्या त्यौहार।

(Due to landslide, the people of Joshimath could not celebrate the festival.)


गौरतलब है कि उत्तराखंड त्यौहारों का प्रदेश है। यहां हर महीने पंद्रह त्यौहार होते हैं। त्यौहार एवं उत्सव देवभूमि के संस्कारों रचे-बसे हैं। जब पहाड़ में आवागमन के लिए सड़कें नहीं थीं, काम-काज से फुर्सत नहीं मिलती थी, तब यही पर्व-त्योहार जीवन में उल्लास का संचार करते थे। ये ही ऐसे मौके होते थे, जब घरों में पकवानों की खुशबू आसपास के वातावरण को महका देती थी। दूर-दराज ब्याही बेटियों को इन मौकों पर लगने वाले मेलों का बेसब्री से इंतजार रहता था। मकर संक्रांति से जीवन के लोक पक्ष का जुड़ा हुआ होता है यही वजह है कि कोई इसे उत्तरायणी, कोई मकरैणी (मकरैंण), कोई खिचड़ी संगरांद तो कोई गिंदी कौथिग के रूप में मनाता है। घुघुतिया और जौनसार में मकरैंण को मरोज त्योहार के रूप में मनाया जाता है। जबकि गढ़वाल में यह मकरैंण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है और सीमान्त जनपद चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में इसे चुन्यां त्यौहार कहते हैं।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती नें अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि जोशीमठ क्षेत्र का प्रसिद्ध चुन्या त्योहार इस साल उदास बीत गया पिछले साल तक चुन्या बनाने के वीडियो फोटो से सोशल मीडिया भरा रहता था। लेकिन इस साल जोशीमठ की पीडा। सुबह सवेरे बच्चे चुन्या हाथ में लेकर पुकार लगाते .." ले कौआ चुन्या हमको दे पुन्या ..! अब ...जाने फिर कब कौवे मुंडेर पर आकर बैठें। वहीं जोशीमठ की ध्याणियों नें कहा कि जोशीमठ भू धसांव नें बहुत दुखी कर दिया है। हमारे मायके में आई इस विपदा से हम ध्याणियां बेहद चिंतित हैं। भू धसांव से न केवल हमारा मायका छूट गया है अपितु मायके के तीज त्यौहार भी। हमें चुन्यां त्यौहार का बेसब्री से इंतजार रहता था लेकिन इस साल बस मायके के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।



ये है चुन्यां त्यौहार-

मकर सक्रांति जिसे जोशीमठ के पैनखंडा क्षेत्र के कुछ गांवों में चुन्या त्योहार के नाम से जाना जाता है। घट (घराट) से पीठा ( दो तीन अनाजों चांवल, काली दाल और गेंहू का मिक्स आटा ) पीस कर विशेषरूप से चुन्या बनाया जाता है। लोग चुन्यां का गांव में पेंणु बांटते हैं और ससुराल में बेटियां उस चुन्या का इंतजार करती है। चुन्या जोशीमठ ही नहीं समूचे पैनखंडा क्षेत्र के लोक का महत्वपूर्ण और अपनत्व का त्यौहार है। सक्रांति की सुबह सबसे पहले चुन्या कौवों को खिलाएं जाते है। मान्यता है कि इस दिन से कौवे जो वर्ष के अधिकतर दिन घरों से गायब दिखते है वो अपना हिस्सा लेने घरों को आ जाते है और घरों में छोटे बच्चे उन्हें चुन्या खिलाते है। मकर संक्राति के दिन चुन्या लगभग हर घर में मुख्य पकवान और मिठाई के रूप में बनाये जाते है और दूर-दूर तक अपने नाते-रिश्तेदारों को इस पकवान, मिठाई को उपहार/कल्यो के रूप में भेजते है। इस त्यौहार का ध्याणियों को विशेष इंतजार रहता है। लेकिन इस साल भू-धसांव की वजह से पौराणिक चुन्या त्यौहार नहीं मना पाये हैं जोशीमठ के वाशिंदे। ध्याणियों के चुन्यां त्यौहार पर भी भू धसांव का ग्रहण लग गया है। जोशीमठ के लोगो का कहना है कि धंसते जोशीमठ में कैसे मनाते अपने तीज त्यौहार...

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